नाग पंचमी (29 जुलाई) पर विशेष* *🚩🌺सांपों के प्रति समर्पण की सांस्कृतिक परंपरा है नाग पंचमी
Nag Panchmi - नाग पञ्चमी पर्व, 30th July, 2025
नाग पंचमी (29 जुलाई) पर विशेष*
*🚩🌺सांपों के प्रति समर्पण की सांस्कृतिक परंपरा है नाग पंचमी
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*🚩🌺श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को प्रतिवर्ष देशभर में नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है, जो इस वर्ष 29 जुलाई को मनाया जा रहा है। हालांकि कुछ राज्यों में चैत्र तथा भाद्रपद शुक्ल पंचमी के दिन भी ‘नाग पंचमी’ मनाई जाती है।*
*🚩🌺ज्योतिष के अनुसार पंचमी तिथि के स्वामी नाग हैं, इसीलिए मान्यता है कि नाग पंचमी के दिन भगवान शिव के आभूषण नाग देवता की पूजा पूरे विधि-विधान से करने से घर में सुख, शांति और समृद्धि के अलावा आध्यात्मिक शक्ति, अपार धन और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और सर्पदंश के भय से भी मुक्ति मिलती है।*
*🚩🌺ज्योतिषाचार्यों के अनुसार नाग पंचमी इस बार हस्त नक्षत्र के शुभ संयोग में मनाई जाएगी। नाग पंचमी के दिन कुछ स्थानों पर ‘कुश’ नामक घास से नाग की आकृति बनाकर दूध, घी, दही इत्यादि से इनकी पूजा की जाती है जबकि कुछ अन्य स्थानों पर नागों के चित्र या मूर्ति को लकड़ी के एक पाट पर स्थापित कर मूर्ति पर हल्दी, कुमकुम, चावल, फूल चढ़ाकर पूजन किया जाता है और पूजन के पश्चात् कच्चा दूध, घी, चीनी मिलाकर नाग मूर्ति को अर्पित की जाती है।*
*🚩🌺मान्यता है कि ऐसा करने से नागराज वासुकि प्रसन्न होते हैं और पूजा करने वाले परिवार पर नाग देवता की कृपा होती है।*
*🚩🌺कुछ धर्म ग्रंथों में नागों को पूर्वजों की आत्मा के रूप में भी माना गया है। हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार नागों को पौराणिक काल से ही देवता के रूप में पूजा जाता रहा है और नाग पंचमी के दिन नाग पूजन करने का तो काफी ज्यादा महत्व माना गया है। भारत में कई स्थानों पर नाग देवता के कई प्राचीन मंदिर हैं और नागालैंड, नागपुर, अनंतनाग, शेषनाग, नागवनी, नागारखंड, भागसूनाग इत्यादि देश में कई स्थानों का तो नाम ही नागों के नाम पर ही रखा गया है।*
*🚩🌺नागालैंड को तो नागवंशियों का मुख्य स्थान माना गया है और कुछ ग्रंथों में कश्मीर को भी नागभूमि कहा गया है। भारत में दक्षिण भारत के पर्वतीय इलाकों के अलावा उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, अरूणाचल प्रदेश, असम इत्यादि में नाग पूजा प्रमुखता से होती है। जिस प्रकार हमारे कुल देवताओं में देवी-देवता शामिल होते हैं, ठीक उसी प्रकार विभिन्न क्षेत्रों में नागों को भी ‘स्थान देवता’ माना जाता है। कई जगहों पर तो नागों को कुल देवता, ग्राम देवता और क्षेत्रपाल भी कहा जाता है।*
*🚩🌺हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार कुल 33 कोटि देवी-देवता हैं, जिनमें नाग भी शामिल हैं।*
*नागों की उत्पत्ति और उनके पाताललोक वासी होने को लेकर महाभारतकालीन एक कथा प्रचलित है।*
*🚩🌺वराहपुराण के अनुसार, महर्षि कश्यप की तेरह पत्नियां थी, जिनमें से एक थी राजा दक्ष की पुत्री कद्रू, जिसने महर्षि कश्यप की बहुत सेवा की, जिससे प्रसन्न होकर महर्षि ने कद्रू को वरदाने मांगने के लिए कहा। कद्रू ने उनसे एक हजार तेजस्वी नाग पुत्रों का वरदान मांगा।*
*🚩🌺महर्षि कश्यप के वरदानस्वरूप कद्रू से ही नाग वंश की उत्पत्ति हुई लेकिन जब इन नागों ने धरती पर लोगों को डसना शुरू किया तो नागों से रक्षा के लिए सभी ने ब्रह्माजी से प्रार्थना की। तब ब्रह्माजी ने सभी नागों को श्राप देते हुए कहा कि जिस तरीके से तुम लोगों पर अत्याचार कर रहे हो, अगले जन्म में तुम सभी का नाश हो जाएगा।*
*🚩🌺यह श्राप सुनकर नाग भयभीत हो गए और उन्होंने कातर स्वर में ब्रह्माजी से प्रार्थना की कि जिस प्रकार मनुष्यों के रहने के लिए उन्हें पृथ्वी दी गई है, उसी प्रकार उन्हें भी इस ब्रह्माण्ड में कोई अलग स्थान दिया जाए, जिससे इस समस्या का भी समाधान हो जाएगा। तब ब्रह्माजी ने उन्हें रहने के लिए पाताल देते हुए कहा कि अब से तुम सभी भूमि के अंदर पाताललोक में ही रहोगे।*
*🚩🌺उसके बाद सभी नाग पाताललोक में निवास करने लगे। माना जाता है कि ब्रह्म्राजी ने मनुष्यों की नागों से रक्षा के लिए जिस दिन उनके पाताल में रहने की व्यवस्था की, उस दिन सावन महीने की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि थी और तभी से इसी तिथि पर नागों की पूजा के लिए ‘नाग पंचमी’ त्योहार मनाया जाने लगा।*
*🚩🌺पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नाग भगवान शिव के गले का हार तो हैं ही, भगवान विष्णु भी समुद्र में शेषनाग की शैया पर विश्राम करते हैं और यह भी मान्यता है कि हमारी धरती इन्हीं शेषनाग के फन पर टिकी है। त्रेता युग में शेषनाग ने भगवान श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण के रूप में धरती पर जन्म लिया था और द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम भी शेषनाग के अवतार माने गए हैं। वैसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से नागों को कृषक मित्र जीव माना गया है।*
*🚩🌺दरअसल ये खेतों में फसलों के लिए खतरनाक जीवों, चूहों इत्यादि का भक्षण कर फसलों के लिए मित्र साबित होते हैं लेकिन वर्तमान समय में नागों या सांपों की खाल, जहर इत्यादि चीजों से बड़े व्यापारिक लाभ के लिए बड़ी संख्या में इन्हें मारा और बेचा जाता है। इसी कारण वन्य और जीव-जंतु विभाग तथा सरकारों द्वारा नागों को संरक्षित करने के लिए सांपों को पकड़ने और उन्हें दूध पिलाने पर रोक लगाई जाती है।*
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मंत्र : ब्रह्म लोके च ये सर्पाः शेषनागाः पुरोगमाः । नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥१॥
विष्णु लोके च ये सर्पाः वासुकि प्रमुखाश्चये । नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥२॥
रुद्र लोके च ये सर्पाः तक्षकः प्रमुखास्तथा । नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥३॥
1. हिन्दु रीतिरिवाज अनुसार श्रावण शुक्लपक्षको पञ्चमी तिथिमा नागको पूजा गरी नाग पञ्चमी पर्व मनाइन्छ। नागको चित्रमा दूध, दही, अक्षता, फूल, दूबो, पैसा राखी गाईको गोबरको सहायताले घरको ढोकामाथि टाँस्ने गरिन्छ।
2. अनन्त, वासुकि, पद्म, महापद्म, तक्षक, कुलीर, कर्कट र शङ्ख गरी नागका आठ कुल छन्। यी अष्टकुल नागको पूजा गरी मूल ढोकामाथि नागको चित्र टाँस्नाले घरमा चट्याङ, आगो र सर्पको भय नहुने धार्मिक विश्वास रहेको छ ।
3. ज्योतिष शास्त्र अनुसार पञ्चमी तिथिका स्वामी नाग देवता हुन् । नाग देवता भूमिमा बस्छन्। भूमिमा खनजोत गर्दा नागलाई कष्ट हुने सम्भावना देखिएकाले नागपञ्चमीका दिन हलो जोत्न र जग खन्न हुँदैन भन्ने मान्यता छ।
4. नागपञ्चमीका दिन नागको विशेष पूजा आजा गरिन्छ । यस दिन नाग देवताको प्रसन्नताका लागि दिनभरि व्रत बसी सूर्यास्तपछि नाग देवतालाई खीर चढाई प्रसाद ग्रहण गर्ने चलनसमेत रहेको छ। यसरी नागको पूजा-उपासना गरी द्वारमा नाग-नागिनीको चित्र टाँस्नाले सर्पभय हुँदैन भन्ने जनविश्वास छ ।
5. नाग पञ्चमीको दिन ब्राह्मण पुरोहित अथवा कन्याहरूले कागजमा विभिन्न नागका चित्र हातैले बनाएर यजमानका घर घरमा पुर्याई टाँस्ने गर्दछन्। यसरी बनाएको नागको चित्रसँगै सूर्य, चन्द्र, शङ्ख, चक्र, गदा, पद्म, माछा, बिच्छी, खजुरो आदिका चित्र पनि समावेश हुन्छन् । नागसँगै खेतबारीमा भेटिने अन्य विषालु जीवहरूको समेत भय नहोस् भनी तिनको पनि चित्र बनाउने चलन छ। नागको पूजा गर्ने मन्त्र पनि यसै कागजमा लेखिएको हुन्छ। गाउँघरमा यही चित्रलाई नागदेवताको प्रतिमा मानी पूजा गरेर घरको दैलोमा टाँस्ने गरिन्छ ।
6. नागदेवताको पूजामा दूध, दूबो, कुश, चन्दन, फूल, अक्षता, लड्डु अर्पण गरिन्छ ।
7. नागपञ्चमीको महत्व: हिन्दू धर्म अनुसार नागलाई देवताको रुपमा पूजा गरिन्छ । वास्तवमा सर्पलाई भगवान शिवको हार र विष्णु भगवानको ओछ्यान मानिन्छ। साथै, सर्पहरू पनि मानिसहरूको जीवनसँग सम्बन्धित छन्। जसको कुंडलीमा कालसर्प दोष हुनेहरुको यो दिन पूजा गर्दा यो दोषबाट मुक्ति मिल्छ। राहु-केतुको कारणले जीवनमा समस्या परेमा नागपञ्चमीका दिन नागको पूजा गरेर समस्याको समाधान पाउन सकिन्छ भन्ने भनिन्छ ।
नाग पञ्चमी पूजा को इतिहास: धार्मिक मान्यता अनुसार समुद्र मन्थनो दौरान डोरी नभेट्दा वासुकी नागको आदेशमा डोरीको रुपमा प्रयोग गरिएको थियो। सर्प वासुकीको पुच्छरलाई देवताहरूले समाए र वासुकीको मुख राक्षसहरूले समाए। भगवान शिवले एउटै मन्थनमा निस्किएको विषलाई आफ्नो घाँटीमा राखेर सबैको रक्षा गर्नुभयो। त्यसपछि यसबाट निस्केको अमृतलाई देवताहरूले ग्रहण गरे, जसका कारण सबै देवता अमर भए। समुन्द्र मन्थनमा वासुकी नागले निर्वाह गरेको महत्वपूर्ण भूमिकाका कारण नागपञ्चमी पर्व मनाउने गरिन्छ र त्यसबेलादेखि नै सबै नाग र सर्पको पूजा गर्ने चलन शुरु भएको हो।
जय भगवान वासुकि नाग। ॐ शान्ति!
Dr R B Biswakarma.
Very good religious information.
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